झांसी में रहने वाले सात एकड़ जमीन के मालिक श्रीपत के बेटे तुलसिया ने नशे और जुए की लत की वजह से सबकुछ बेच डाला। उनके पास एक लाइसेन्सी बन्दूक भी थी. वह फिलहाल अपनी पत्नी के साथ हंसारी इलाके में रहते हैं और भीख मांग कर किसी तरह अपना जीवन-यापन कर रहे हैं। आजाद देश की सरकार का इनपर कोई ध्यान नहीं है|
जब तक हाथ-पैर काम कर रहे थे, तब तक खेतों में मजदूरी करते रहे, लेकिन जब शरीर से भी असमर्थ हो गये, तब असहाय होकर आज आज़ाद हिन्द सेना का ये सिपाही अपनी जिंदगी गुजारने के लिए दर-दर भटकते हुए भीख मांगने पर मजबूर हो गया l श्रीपत कहते हैं कि मेरी हालत जो भी हो, लेकिन मरते दम तक मेरी इच्छा यही रहेगी कि मैं अपने देश के लिए काम आ सकूँ l मेरा सौभाग्य था कि मैं नेताजी के साथ उनकी सेना में शामिल होकर देश के लिए लड़ सका l
श्रीपत जी आजकल अपनी पत्नी के साथ हंसारी में एक झोपड़ी में रहतें हैं l ऐसा नही है कि आज़ादी की लड़ाई लड़ने वाले सेनानियों में सिर्फ यही अकेले हैं, ऐसे और बहुत से उदाहरण हैं, हमारे देश में जिन्होंने देश के लिए अपना सब कुछ लुटा दिया, लेकिन सुध लेने वाला कोई नही l
श्रीपत की तरह बहराइच के प्रयागपुर में रहने वाले ओरीलाल 1942 में ब्रिटिश सेना छोड़कर आज़ाद हिन्द फ़ौज में शामिल हो गये थे l ओरीलाल ने दूसरे विश्व युद्ध में आजाद हिंद फौज की तरफ से रेडहिल इम्फाल में ऑपरेशन यूजीओ की कमान संभाली थी। 99 साल के हो चुके ओरीलाल का शरीर जवाब देने लगा है, स्वतंत्रता सेनानी होने के नाते उन्हें पेंशन तो मिलती है, लेकिन इस पेंशन से उनके घर का गुजारा नहीं हो पाता है, जिसके लिए उन्हें खाने के लिए दूसरों के सामने हाथ फैलाना पड़ रहा है।
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