विद्या वाचस्पति पं. मधुसूदन सरस्वती ने ‘इन्द्रविजय’ नामक ग्रंथ में ऋग्वेद के छत्तीसवें सूक्त के प्रथम मंत्र का अर्थ लिखा है जिसमें कहा गया है कि ऋभुओं ने तीन पहियों वाला ऐसा रथ बनाया था जो अंतरिक्ष में भी उड़ सकता था|
भरद्वाज का वैमानिक शास्त्र : सबसे महत्वपूर्ण है चौथी शताब्दी ईसा पूर्व में महर्षि भरद्वाज द्वारा लिखित ‘वैमानिक शास्त्र’ जिसमें एक उड़ने वाले यंत्र ‘विमान’ के कई प्रकारों का वर्णन किया गया था तथा हवाई युद्ध की तकनीक बताई थी|
इसके अलावा वैमानिक शास्त्र में उल्लेखित प्रमुख पौराणिक विमान :
*‘गोधा’ ऐसा विमान था जो अदृश्य हो सकता था। इसके जरिए दुश्मन को पता चले बिना ही उसके क्षेत्र में जाया जा सकता था।
*‘परोक्ष’ दुश्मन के विमान को पंगु कर सकता था। इसकी कल्पना एक मुख्य युद्धक विमान के रूप में की जा सकती है। इसमें ‘प्रलय’ नामक एक शस्त्र भी था जो एक प्रकार की विद्युत ऊर्जा का शस्त्र था, जिससे विमानचालक भरी तबाही मचा सकता था
*‘जलद रूप’ एक ऐसा विमान था जो देखने में बादल की भाँति दिखता था। यह विमान छ्द्मावरण में माहिर होता था।