भारत का द्रोणागिरि – यहां क्यों वर्जित है हनुमान जी की पूजा, खास रिपोर्ट

द्रोणागिरि गांव के निवासियों के अनुसार –
द्रोणागिरि गांव के निवासियों के अनुसार जब हनुमान बूटी लेने के लिये इस गांव में पहुंचे तो वे भ्रम में पड़ गए। उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा था कि किस पर्वत पर संजीवनी बूटी हो सकती है। तब गांव में उन्हें एक वृद्ध महिला दिखाई दी। उन्होंने पूछा कि संजीवनी बूटी किस पर्वत पर होगी? वृद्धा ने द्रोणागिरि पर्वत की तरफ इशारा किया। हनुमान उड़कर पर्वत पर गये पर बूटी कहां होगी यह पता न कर सके। वे फिर गांव में उतरे और वृद्धा से बूटीवाली जगह पूछने लगे। जब वृद्धा ने बूटीवाला पर्वत दिखाया तो हनुमान ने उस पर्वत के काफी बड़े हिस्से को तोड़ा और पर्वत को लेकर उड़ते बने। बताते हैं कि जिस वृद्धा ने हनुमान की मदद की थी उसका सामाजिक बहिष्कार कर दिया गया। आज भी इस गांव के आराध्य देव पर्वत की विशेष पूजा पर लोग महिलाओं के हाथ का दिया नहीं खाते हैं और न ही महिलायें इस पूजा में मुखर होकर भाग लेती हैं।

इस घटना से जुड़ा प्रसंग –
यूँ तो राम के जीवन पर अनेकों रामायण लिखी गई है पर इनमे से दो प्रमुख है एक तो वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण और एक तुलसीदास द्वारा रचित रामचरित मानस। इनमे से जहाँ वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण को सबसे प्रामाणिक ग्रन्थ माना जाता है वही तुलसीदास द्वारा रचित रामचरित मानस सबसे अधिक पढ़ा जाता है। पर जैसा की हमने हमारे एक पिछले लेख में आप सब को बताया था की रामायण और रामचरितमानस में कई घटनाओं में, कई प्रसंगो में अंतर है। ऐसा ही कुछ अंतर दोनों किताबों में इस प्रसंग के संबंध में भी है।  यहाँ हम आपको दोनों किताबो में वर्णित प्रसंग के बारे में बता रहे है।

वाल्मीकि रचित रामायण के अनुसार
हनुमानजी द्वारा पर्वत उठाकर ले जाने का प्रसंग वाल्मीकि रामायण के युद्ध कांड में मिलता है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार रावण के पुत्र मेघनाद ने ब्रह्मास्त्र चलाकर श्रीराम व लक्ष्मण सहित समूची वानर सेना को घायल कर दिया। अत्यधिक घायल होने के कारण जब श्रीराम व लक्ष्मण बेहोश हो गए तो मेघनाद प्रसन्न होकर वहां से चला गया। उस ब्रह्मास्त्र ने दिन के चार भाग व्यतीत होते-होते 67 करोड़ वानरों को घायल कर दिया था।

Story & History of Dronagiri Parvat in Hindi

हनुमानजी, विभीषण आदि कुछ अन्य वीर ही उस ब्रह्मास्त्र के प्रभाव से बच पाए थे। जब हनुमानजी घायल जांबवान के पास पहुंचे तो उन्होंने कहा – इस समय केवल तुम ही श्रीराम-लक्ष्मण और वानर सेना की रक्षा कर सकते हो। तुम शीघ्र ही हिमालय पर्वत पर जाओ और वहां से औषधियां लेकर आओ,  जिससे कि श्रीराम-लक्ष्मण व वानर सेना पुन: स्वस्थ हो जाएं।

click next to watch video on last page/ किस पर्वत पर संजीवनी बूटी है।